बस अब और नहीं.......
वर्षों तुम सबने
हमारे भरोसे का खून किया,
बुद्ध और गांधी की धरती को
बेवजह रक्त-रंजित किया,
हल-फिलहाल भी ऐसा ही किया ।
बहुत हो लिया ,
तुम्हारा विस्तारवाद का खेल,
आतंकवाद से मेल,
अब और नहीं.........
आज के बाद
हम कबूतर नहीं उड़ाऐंगे,
बाज उड़ाऐंगे,बाज
जिसमें धमक होगी
धमनियों में बहते गर्म लहू की,
परवाज़ में जिसके होगी
बिजलियों की कड़क,
प्रतिरोध में ताकत चट्टानों की।
दबाव और आतंक के साये में
अमन की बात नहीं दोहराएंगे।
अब हम केवल प्रतिकार नहीं करेंगे,
प्रतिशोध लेंगे, प्रतिशोध,
फिंगर और टॉप पर सवार होकर
बज्र से भी कठोर आघात करेंगे।
अब चैन से नहीं बैठेंगे
प्रतिघात करेंगे,
भीषण प्रतिघात,
धरती की क्या करते हो बात
समंदर की तूफानी लहरों पर भी
दौड़ लगाएंगे, दौड़।
ढूँढेंगे हर तरह के जहरीले तीर,
तुम्हारे लिए
उसे सजाएँगे
अपने तरकश में ।
बहुत कर लिया इलाज
तुम्हारे दिये जख्मों का,
बहुत सह लिया दर्द,
अब मरहम नहीं लगाएंगे,
अपने घावों को नहीं सहलाएंगे,
सूखते घावों खुरच-खुरचकर
फिरसे हरा बनाएँगे।
सूखने नहीं देंगे
अपने आंसुओं को
ज्वालामुखी का धधकता लावा बनाएँगे,
किनारा तोड़ बहा ले जाने को आतुर
उफनती नदी की
विध्वंसक धार बनाएँगे।
खून से लथ-पथ शहीदों की तस्वीर
अपने घरों की दीवारों पर सजाएँगे,
उनकी गर्जनाओं को
अपने कानों में बसाएँगे।
जितने हमने अपने खोये,
जितने हमने आंसु रोये
उनको हर-पल रखेंगे याद।
अब मोमबत्ती नहीं
मशाल जलाएंगे
शिव के धरा-धाम कैलाश में
डमरू की आवाज पर
तांडव मचाएंगे,तांडव।
अब नहीं होगी गांधी-नेहरू की बात,
ना ही भेजी जाएगी पंचशीली सौगात,
अतीत अब हावी नहीं हो पाएगा
हमारे वर्तमान पर।
अपनी उस बेबसी को
नहीं देंगे कोई नाम,
नहीं बनाएँगे अब इसे,
अपने जीने का अंदाज।
बेशक आगाज किया है तुमने
अंजाम तक इसे हम ले जाएंगे,
बहुत हो गया सब्र का इम्तिहान,
तोड़ डालेंगे तुम्हारे बनाए सारे बाँध
तुमको भी बहा ले जाएंगे।
अब तो हमारा पथ होगा अग्नि-पथ
और हम उसके पथिक बन जाएंगे,
हिंसा को ही बनाएँगे अहिंसा का हथियार
अब तो बस प्रहार करेंगे,प्रहार।
राजीव(01/09/2020)
MUCH WATER HAS FLOWN NOW
Hear
it loud and clear:
Enough
is enough.
Now
there in no chance of change
In
your foxy attitude,
Your
deceitful and purposive aggression.
You
are the reason
Of
the nasty bloodshed
On
the land of Buddha and Gandhi.
But
listen carefully,
Now
we will not walk with the lambs
In
the soft grassy land,
We’ll
prefer to sit
On
the back of a slouching tigress
With
armours and arms
Of
our choice.
His
roar would be thunderous
Full
of fury and fire,
And
reaction would be lightening fast.
We’ll
not fly pegions now
When
smoke of terror and agression
Is
all around.
We’ll
fight,
Fight
to the end
With
the rocky will.
What
to talk of land,
We’ll
conquer the seas
And
penetrate the limits of sky,
Take
our revenge to the next level.
Hitting
them hammer hard.
We
have applied
Many
layers of treatment
To
our wounds
That
you gave time and again.
But
from now on
We’ll
not use any ointment,
Nor
would like to nurture them gently.
We’ll
keep scratching
The
healing wounds
To
the level of burning pain,
And
make them remind
Of
what we were afflicted upon
And
what we are going through
Even
today.
We’ll
not let our mind forget
Those
painful tears,
We’ll
permit ourselves to turn
Into
a red hot volcanic blow
And
burn down enemy camps.
We’ll
hang the pictures
Of
our martyres on every wall,
We’ll
save their gallant roars
In
the air, water and land,
And
count
Every
casualties we suffred,
Triclour
wrapped every coffins,
The
pain and pangs
Of
the families and friends.
But
now on
We’ll
not take out a candle march,
And
we’ll not lament our past.
We’ll
move with a torch
To
light/lit-up our spirit
Now
there won’t be Gandhi’s “Non-violnce’’,
Nor
would be Nehru’s ‘’Panchsheel’’.
Aggression
will be the seed of success.
We
will slouch towards enemy
And
pounce upon every moment.
No
doubt,
You
have grossly misadventured then,
You
have grossly misadventured now.
But
be ready to face
Our
well orchestrated
Music
of adventure.
You
have earlier tested
Our
Himalayan resolve,
Now
you will taste
Our
calamitous wrath,
Or
bear the avelanch
Of
impatience
Sweeping
you down
To
nowhere.
Now
we are on the path of fire
Violence
is the weapon of peace.