गौरेया 
      सालों बाद 
आज 
सुबह-सवेरे
घर के दरवाजे पर 
गौरेया का जोड़ा
फुदक-फुदक कर
चहक रहा था।
मानों कह रहा हो
तुम्हारे बिना मन
नहीं लगा
तो फिर मिलने चले आए
तुमसे,
चाहते हैं कुछ दिन
रहना 
तुम सबके साथ।  
मैं भी तो मन से यहीं चाहता था,
उन्हें बताता
मैं
अपने मन की बात 
भरोसे का कत्ल तो
हमने ही किया था।  
दौड़कर मैं
घर के
भीतर गया 
कटोरे में
चावल के
दाने भर लाया
कटोरा जब उनके सामने रखने लगा
वे उड़कर दूर जा
बैठे।
कटोरा बीच सड़क पर रख
मैं अलग हो गया 
उन्हें भरोसा नहीं
हो रहा था। 
सतर्क निगाहों से 
शंका मुक्त होने के
बाद 
दोनों चुगने लगे थे
दाना  
मैं समझ रहा था सारी
बात 
पर कैसे उन्हें
विश्वास दिलाता 
सब एक से नहीं
होते।  
गौरेया भी समझ रही थी
शायद मेरी बात ।
अब तो दोनों रोज आने
लगे
थोड़ा पास भी आने
लगे 
घर के दरवाजे के ऊपर
घास-फूस जमा कर
घोसला बनाने लगे
उनकी एक-एक हरकत 
मन को हर्षाती, 
मन का कोना-कोना 
उमंग से भर जाती थी। 
कुछ दिनों बाद अंडे 
फिर धीरे-धीरे परदार
होते 
बेपरदार चूजे 
पांचों का घोसला में
होना 
महानगरों के जीवन का
आईना थे 
लेकिन कौए तो हर जगह
होते है
एक दिन गौरेये के
चूजे ले उड़े
विश्वास फिर घात का
शिकार हो गया
घोसला खंडहर में बदल
गया
कुछ दिन तक तो आते
रहे दोनों
बैचेन से ढूंढते रहे
कुछ 
मैंने भी एक मजबूत, सुरक्षित  
घोसला बनाकर रखा था 
लेकिन भरोसे की जमीन
नहीं दे पाया।  
धीरे-धीरे गौरेया ने
आना छोड़ दिया। 
इंसानी बस्ती में
चहचहाना छोड़ दिया। 
अब तो बस हम हैं
गौरेयों का घोसला है
बस  .....   (05/04/2020)        
 
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